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इस मंदिर में माता को चढ़ता है ढाई प्याला शराब, गायब हो जाता प्रसाद! अंदर प्रवेश करने का भी कठिन नियम

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Agency:Bharat.one Rajasthan

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नागौर के भंवाल ग्राम में स्थित भंवाल माता मंदिर में शराब को किसी नशे के रूप में नहीं, बल्कि प्रसाद की तरह चढ़ाया जाता है. काली माता ढाई प्याला शराब ही ग्रहण करती हैं. चांदी के प्याले में शराब भरकर मंदिर के पुजा…और पढ़ें

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भंवाल माता मंदिर 

हाइलाइट्स

  • भंवाल माता मंदिर में शराब का भोग चढ़ाया जाता है.
  • शराब का प्रसाद चढ़ाने के लिए भक्तों को आस्था की कसौटी पर परखा जाता है.
  • मंदिर को 800 साल पहले डाकुओं ने बनवाया था.

नागौर:- क्या आप ऐसे मंदिर के बारे में जानते हैं, जिसकी खासियत अन्य मंदिरों और शक्तिपीठों में सबसे अलग है. नागौर जिले के भंवाल ग्राम में स्थित भंवाल माता मंदिर की कहानी थोड़ी अलग है. दूसरे देवी मंदिरों की तरह यहां माता को सिर्फ लड्डू, पेड़े या बर्फी का नहीं, शराब का भोग भी लगता है, वह भी ढाई प्याला शराब. सुनने में यह थोड़ा अजीब जरूर लगता है, लेकिन यह सच है. यह भोग मगर हर भक्त नहीं चढ़ा सकता. इसके लिए भक्तों को भी आस्था की कसौटी पर परखा जाता है. यदि माता को प्रसाद चढ़ाने आए श्रद्धालुओं के पास बीड़ी, सिगरेट, जर्दा, तंबाकू और चमड़े का बेल्ट, चमड़े का पर्स आदि होता है, तो भक्त मदिरा का प्रसाद नहीं चढ़ा सकता.

चढ़ता है ढाई प्याला शराब
इस मंदिर में शराब को किसी नशे के रूप में नहीं, बल्कि प्रसाद की तरह चढ़ाया जाता है. काली माता ढाई प्याला शराब ही ग्रहण करती हैं. चांदी के प्याले में शराब भरकर मंदिर के पुजारी अपनी आंखें बंद कर देवी मां से प्रसाद ग्रहण करने का आग्रह करते हैं. कुछ ही क्षणों में प्याले से शराब गायब हो जाती है. ऐसा 3 बार किया जाता है. मान्यता है कि तीसरी बार प्याला प्रसाद के रूप में आधा भरा रह जाता है. कहा जाता है कि काली माता उसी भक्त की शराब का भोग लेती हैं, जिसकी मनोकामना या मन्नत पूरी होनी होती है और वह सच्चे दिल से भोग लगाता है. इस मंदिर को प्राचीन हिन्दू स्थापत्य कला के अनुसार तराशे गए पत्थरों को आपस में जोड़ कर बनाया गया है. मान्यता है कि भंवाल मां प्राचीन समय में यहां एक पेड़ के नीचे पृथ्वी से स्वयं प्रकट हुई हैं.

ब्रह्माणी और काली माता की दो प्रतिमाएं विराजित
मंदिर के गृभगृह में माता की दो मूर्तियां स्थापित हैं. दाएं ओर ब्रह्माणी माता, जिन्हें मीठा प्रसाद चढ़ाते हैं. यह लड्डू या पेड़े या श्रद्धानुसार कुछ भी हो सकता है. बाएं ओर दूसरी प्रतिमा काली माता की है, जिनको शराब चढ़ाई जाती है. लाखों भक्त यहां अपनी मन्नत लेकर आते हैं. मन्नत पूरी होने पर भक्त माता को धन्यवाद देने दोबारा यहां आते हैं.

डाकुओं ने बनवाया था मंदिर
तकरीबन 800 साल पुराने इस मंदिर को किसी धर्मात्मा या सज्जन ने नहीं, बल्कि डाकुओं ने बनवाया था. स्थानीय बड़े-बुजुर्गों के मुताबिक यहां एक कहानी प्रचलित है कि इस स्थान पर डाकुओं के एक दल को राजा की फौज ने घेर लिया था. मृत्यु को निकट देख उन्होंने मां को याद किया. मां ने अपने प्रताप से डाकुओं को भेड़-बकरी के झुंड में बदल दिया. इस प्रकार डाकुओं के प्राण बच गए. इसके बाद उन्होंने यहां मंदिर का निर्माण करवाया.

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इस मंदिर में माता को चढ़ता है ढाई प्याला शराब, गायब हो जाता प्रसाद!

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Bharat.one व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.

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