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Ganesh mahotsav: कानपुर शहर का घंटाघर इलाका हमेशा से भीड़भाड़ के लिए मशहूर रहा है. इसी जगह पर एक ऐसा मंदिर है. यहां गणेश मंदिर है.जिसे लोग सिद्धि विनायक मंदिर भी कहते हैं. यह मंदिर अंग्रेजों की आंखों के सामने ब…और पढ़ें
यहां गणेश मंदिर है.जिसे लोग सिद्धि विनायक मंदिर भी कहते हैं.खास बात यह है कि यह मंदिर अंग्रेजों की आंखों के सामने बनाया गया था. लेकिन उन्हें भनक तक नहीं लगी.उस समय अंग्रेज इस इलाके में मंदिर बनने नहीं देते थे. लेकिन भक्तों की आस्था और बुद्धिमानी के आगे उनकी सख्ती काम न आई.
करीब सौ साल पहले जब इस मंदिर को बनाने की योजना बनी, तब अंग्रेज अफसरों ने साफ मना कर दिया.उनका कहना था कि पास ही मस्जिद है, इसलिए यहां मंदिर नहीं बनाया जा सकता. भक्त लोग परेशान हो गए, लेकिन हार नहीं मानी. उन्होंने मंदिर को मकान के रूप में बनाने की योजना बनाई. बाहर से यह मंदिर बिल्कुल तीन मंजिला मकान जैसा नजर आता है.अंग्रेजों को लगा कि कोई नया घर बन रहा है, लेकिन असल में यह मंदिर तैयार हो रहा था.
तिलक ने किया भूमि पूजन
बाबा रामचरण नाम के एक समाजसेवी ने इस जगह की नींव रखी थी.जब स्वतंत्रता संग्राम के बड़े नेता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक कानपुर आए, तो उन्होंने यहां भूमि पूजन किया. लेकिन अंग्रेजी राज के कारण मूर्ति स्थापना तब नहीं हो पाई.बाद में जब निर्माण पूरा हुआ, तो ऊपर की मंजिल पर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित कर दी गई और निचली मंजिल का इस्तेमाल अन्य कामों के लिए किया गया.
यह मंदिर हर लिहाज से अनोखा है. यहां भगवान गणेश के कई स्वरूप विराजमान हैं. खास तौर पर संगमरमर और पीतल से बनी सुंदर मूर्तियां भक्तों का मन मोह लेती हैं. यहां भगवान गणेश के साथ-साथ रिद्धि-सिद्धि और शुभ-लाभ की मूर्तियां भी हैं.मंदिर के अंदर एक विशेष रूप से दस सिर वाले गणेश जी का स्वरूप भी है, जो दुर्लभ माना जाता है.
श्रद्धा और आजादी की मिसाल
समय के साथ यह मंदिर सिर्फ पूजा की जगह नहीं रहा, बल्कि श्रद्धा और आजादी की भावना का प्रतीक बन गया. कानपुर में सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत भी इसी मंदिर से हुई थी.जैसे मुंबई में गणेश महोत्सव का खास महत्व है, वैसे ही कानपुर के इस मंदिर से लोगों की भावनाएं जुड़ी हैं.आज भी गणेश चतुर्थी पर हजारों श्रद्धालु यहां जुटते हैं और मंदिर परिसर भक्ति गीतों और जयकारों से गूंज उठता है.