एक शिशु माँ को जानने और समझने का प्रयास नहीं करता, वह सहज रूप से माँ पर विश्वास करता है. इसी तरह जब हम भोले भाव से दैवी शक्ति में श्रद्धा रखते हैं, तो यह हमारे जीवन में असीम बल का स्रोत बन जाती है. सर्वव्यापी ब्रह्मांडीय ऊर्जा ही संपूर्ण जगत की जननी है, जल में मछली के समान, हम सब चेतना के इस अनंत सागर में विद्यमान है. समस्त प्रपंच उस एक परम शक्ति का ही विलास है, जो स्वयं को असंख्य रूपों में व्यक्त करती हैं. संपूर्ण ब्रह्माण्ड इसी शक्ति द्वारा संचालित होता है. नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान किये जाने वाले अनुष्ठान और उपासना शक्तिस्वरूपा मां को अपने जीवन में जाग्रत करने के माध्यम हैं.
नवरात्रि एक आंतरिक यात्रा है, स्थूल से सूक्ष्म जगत की ओर, अव्यक्त दिव्यता को व्यक्त करने का पर्व, जहाँ से सृष्टि की उत्पत्ति हुई है, उस स्रोत से हमारे संबंध को पुनः स्थापित करने का उत्सव, .नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ है नौ रातें. यहाँ ‘नव’ के दो अर्थ हैं: ‘नया’ और ‘नौ’ ! रात्रि वह है जो तुम्हें विश्रांति देती है. जीवन में तीन तरह के ताप होते हैं – आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक . जो तुम्हें इन तीनों प्रकार के तापो से शांति देती है, वह ‘रात्रि’ है . जैसे शिशु नौ महीने गर्भ में विश्राम करता है, नवरात्रि के नौ दिन हमें अपने स्रोत से जोड़ते हैं. यह एक ऐसा पवित्र काल है जब ब्रह्मांड की सारी विविधताएँ उस एक दिव्य शक्ति को प्रकट करने के लिए एकत्रित होती हैं, जो तुम्हें माँ से भी बढ़ कर असीम प्यार करती है, तुम्हारा उत्थान करती है, और तुम्हारी रक्षा करती है.
समस्त ब्रह्माण्ड की रचना प्रकृति के मौलिक गुणों – सत्त्व, रजस और तमस – से हुई है. देवी त्रिगुणात्मिका है – तीनों गुणों की स्वामिनी. हर प्राणी इन तीन गुणों के अधीन है. नवरात्रि के पहले तीन दिन तमो गुण(अवसाद, भय और भावनात्मक अस्थिरता) के प्रतीक हैं. इन दिनों में देवी को महादुर्गा के रूप में पूजा जाता है. अगले तीन दिन रजो गुण (व्यग्रता और आवेग) से संबंधित हैं, और देवी की आराधना महालक्ष्मी के रूप में की जाती है. अंतिम तीन दिन सत्त्व गुण (शांति, स्थिरता और उत्साह) के माने जाते हैं, जहाँ देवी का महासरस्वती के रूप में पूजन किया जाता है. इस प्रकार हमारी चेतना तमस और रजस से गुजर कर, सत्त्व गुण में खिलती है. जब सत्त्व गुण की वृद्धि होती है तब जीवन में विजय की प्राप्ति होती है. मौन और आनंद के साथ बाह्य जगत से अपने अंतकरण तक की इस सुखद यात्रा में नकारात्मक भावों का नाश होता है. प्राण ऊर्जा का आरोहण ही महिषासुर (जड़ता), शुंभ-निशुंभ (स्वयं व दूसरों पर संदेह) और मधु-कैटभ (राग-द्वेष के चरम रूप) जैसे आसुरी प्रवत्तियों को मिटा सकता है. गहरी जड़ें जमाए हुए दुर्गुण और उन्माद (रक्तबीजासुर), कुतर्क (चंड-मुंड) और धूमिल दृष्टि (धूम्रलोचन ) को जीवन-शक्ति के स्तर को बढ़ाकर ही पराजित किया जा सकता है. दुर्गासप्तशती में देवी माँ द्वारा निरंतर आकार बदलने वाले राक्षस महिषासुर का वध करने की वीर गाथा का वर्णन है. वह असुर कभी भैंसे के रुप में, कभी शेर के रूप में, कभी आदमी के रूप में विशाल सैन्य सहित अपना रूप बदलता रहा परन्तु अंत में देवी ने उसका संहार किया.
अब वेदांत की दृष्टि से प्रश्न उठता है कि यदि सब कुछ एक ही ऊर्जा का विस्तार है, तो युद्ध के लिए दो कहाँ से आये ? क्वांटम के सूक्ष्म स्तर पर, यह जगत तरंगों या ऊर्जा के आपसी जुड़ाव का जाल प्रतीत होता है. किंतु स्थूल आयाम की वास्तविकता में विविधता और पृथकता स्पष्ट होती है. उदाहरण के लिए, जबकि एक स्तर पर दरवाजा, मेज और कुर्सी सभी मूलभूत रूप में लकड़ी ही हैं, अन्य स्तर पर वे विशिष्ट गुणों से युक्त विशिष्ट वस्तुएँ बन जाती हैं. आप किसी दरवाजे के ऊपर नहीं बैठते, और प्रायः किसी प्रवेश द्वार पर कुर्सी का उपयोग नहीं करते. द्वैत में सत्य और असत्य, अच्छाई और बुराई का द्वंद्र प्रतीत होता है. ये विरोधात्मक लगते हैं, पर वास्तव में एक-दूसरे के पूरक होते हैं. इसी कारण प्राचीन ऋषियों ने जीवन को ‘लीला’ कहा, जिसका अर्थ है ‘क्रीड़ा’. उन्होंने श्री राम के जीवन को संघर्ष नहीं, बल्कि ‘रामलीला’ के रूप में वर्णन किया. जब तुम जीवन को खेल के रूप में देखते हो, तो आनंदित हो जाते हो.
देवताओं और असुरों का संग्राम और गुणों का आपसी खेल किसी विशेष समय या स्थान तक सीमित नहीं है. यह निरन्तर घटित हो रहा है और जीवन को रोचक बनाता है. जब सत्त्व (उत्साह व आनंद) की वृद्धि होती है, तो जीवन स्वतः उत्सव बन जाता है. हालांकि नवरात्रि बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व माना जाता है, वास्तविकता में यह परम सत्य की दृश्यमान भिन्नता पर जीत का प्रतीक है.हमारी चेतना प्राचीन और नवीन दोनों है. प्रकृति में तुम्हे पुराने और नए का समावेश सदा मिलेगा. सूरज पुराना भी है और नया भी. एक नदी में हर क्षण ताजा जल बहता रहता है, परंतु फिर भी नदी बहुत पुरातन है .
देवी शक्ति के 64 स्पंदन सूक्ष्म जगत का संचालन करते हैं. ये स्पंदन सजग चेतना के ही अंग है, और हमे भौतिक और परमार्थिक वरदान प्रदान करते हैं. नवरात्रि उत्सव है, इन दैवी स्पंदनों को पुनर्जीवित करने और हमारे अंतरतम स्वरूप का सत्कार करने का. प्रकृति का हर रूप और हर पहलू माता रानी का ही है. देवी माहात्म्य में दी गई देवी स्तुति – या देवी सर्व भूतेषु…., इस सत्य को सुन्दर रूप में प्रस्तुत करती है.
नवरात्रि में देवी की आराधना द्वारा हम तीनों गुणों को संतुलित करते हैं, सत्त्व की वृद्धि करते हैं और उस शुद्ध और अनंत चेतना में स्थापित होते हैं. यही यात्रा मन की नकारात्मक प्रवृत्तियों का अंत करती है और आत्मा के गहनतम स्रोत से जोड़ देती है. जब हम भीतर की नकारात्मकता पर विजय पाते हैं, तब जीवन सहज ही उत्सव बन जाता है. यही असली विजयदशमी है.
गुरुदेव श्री श्री रविशंकर
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर एक मानवतावादी और आध्यात्मिक गुरु हैं। उन्होंने आर्ट ऑफ लिविंग संस्था की स्थापना की है, जो 180 देशों में सेवारत है। यह संस्था अपनी अनूठी श्वास तकनीकों और माइंड मैनेजमेंट के साधनों के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाने के लिए जानी जाती है।
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