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प्रेमानंद महाराज को भक्त ने सुनाई ऐसी शिव स्तुति मंत्र, सुनकर आप भी हो जाएंगे शिवमय, आप भी करें उच्चारण

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Sant Premanandji Maharaj: देश में सबसे ज्यादा चर्चाओं में रहने वाले साधु-संतों में संत प्रेमानंद महाराज भी एक हैं. उनकी लोकप्रियता विदेशों तक फैली हुई है. संत प्रेमानंदजी महाराज एक दिव्य विभूति जिन्होंने अपनी मधुर वाणी और भक्तिमय जीवन से लाखों लोगों को प्रेरित किया है. उनके प्रवचन काफी प्रेरणादायक होते हैं. इसलिए उनके प्रवचन के वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल होते रहते हैं, जिनमें वो तमाम तरह के सवालों का जवाब देते हैं. इस बार महाराज की सभा में अभिलाषा नाम की एक भक्त पहुंची, जिसने शिव स्तुति मंत्र सुनाकर पूरा माहौल शिवमय कर दिया. इस दौरान बाबा भी हाथ जोड़े हुए ध्यानमग्न थे.

ये सच है कि देवो के देव महादेव की पूजा सबसे आसान है. शिवजी को आप मात्र 1 लोटा जल ही प्रसन्न कर सकते हैं. इसके अलावा, कुछ मंत्रों और स्तुति से भी शिवजी का आशीर्वाद पाया जा सकता है. इसी में एक है- “पशूनां पतिं पापनाशं परेशं” वेदसार शिवस्तव के एक प्रसिद्ध श्लोक का अंश है, जिसका अर्थ है कि वह सभी पशुओं के स्वामी, पापनाशक और परमेश्वर हैं. यह आदि शंकराचार्य द्वारा रचित शिव स्तुति का हिस्सा है, जिसमें भगवान शिव के विभिन्न गुणों और रूपों का वर्णन किया गया है. तो आइए पढ़ें शिव स्तुति मंत्र-

शिव स्तुति मंत्र

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।1।

महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।2।

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।3।

शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।4।

परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।5।

न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।6।

अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।7।

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।8।

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।9।

शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।10।

त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।11।

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