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महिलाओं को पेशाब की क्यों होती हैं इतनी दिक्कतें, कैसे इससे निपटा जाए, डॉक्टर से ही समझ लीजिए सारी बात

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Bladder problems in women: महिलाओं में पेशाब की थैली की संरचना जटिल होती है. इसका मुख्य काम मूत्र को कलेक्ट करना और नियंत्रित करना है और फिर बाहर निकाल देना है. पेशाब की थैली की मांसपेशियां अंडाकार और मस्कुलर होती है. जिससे यह शरीर में मूत्र के प्रवाह को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. महिलाओं में मूत्र की थैली पेल्विक एरिया में स्थित होती है.यानी मांसपेशियों और हड्डियों के बीच के निचले हिस्से में. इसका मूत्रमार्ग प्राइवेट पार्ट में उपर स्थित होती है. महिलाओं में मूत्रमार्ग की लंबाई पुरुषों की तुलना में काफी छोटी होती है. यह लगभग 4 से 5 सेंटीमीटर की होती है. यही सबसे बड़ा कारण होता है कि महिलाओं को अक्सर पेसाब संबंधी दिक्कतें होती है. आखिर इसके क्या-क्या कारण है और इससे कैसे बचा जाए, इसे लेकर नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. प्रीति बंसल से बात की.

ब्लैडर में दिक्कत का क्या है कारण
डॉ. प्रीति बंसल ने बताया कि महिलाओं के पेल्विक रीजन में कई चीजें होती है. पुरुषों की तुलना में महिलाओं के पेल्विक रीजन में यूट्रेस यानी गर्भाशय, अंडाशय और फेलोपियन ट्यूब अतिरिक्त अंग होते हैं. ये चीजें पुरुषों में नहीं होते. यही कारण है कि यहां महिलाओं में पेशाब की थैली छोटी होती है. वहीं दूसरी ओर यही नीचे की ओर मलद्वार होता है. यानी बच्चादानी, मलद्वार और पेशाब की थैली तीनों सटा हुआ रहता जिससे अक्सर यहां बैक्टीरियल या फंगस इंफेक्शन का खतरा रहता है.इसके अलावा महिलाओं में हर महीने होने वाले पीरियड्स के कारण शरीर के अंदर जबर्दस्त हार्मोनल बदलाव होता है.इससे पेल्विक एरिया का पीएच या एसिडिक लेवल में भारी ज्यादा उतार-चढ़ाव होता है.इन सब कुदरती कारणों से अक्सर ब्लैडर में इंफेक्शन का खतरा रहता है. डॉ. प्रीति बंसल ने बताया कि डिलीवरी के समय कुछ महिलाओं में जटिलताएं और बढ़ जाती है जिसके कारण यूरेनरी ब्लैडर के मसल्स में स्ट्रेन पड़ जाता है. इससे भी ब्लैडर कमजोर होने लगती है. उम्र बढ़ने के साथ यह और बढ़ता जाता है.

इंफेक्शन का सबसे ज्यादा खतरा
डॉ. प्रीति बंसल ने बताया कि जो महिलाएं सेक्शुअली एक्टिव होती है, उनमें ब्लैडर में इंफेक्शन होने का एक और खतरा है. इससे ब्लैडर के पास एसिडिक नेचर कम जाता है और नमी बढ़ जाती है. वहीं पुरुषों के अंगों के टच होने के कारण यहां का एसिडिक नेचर और ज्यादा कम हो जाता है. इस नमीयुक्त जगह के कारण यहां सूक्ष्मजीवों के पनपने का खतरा ज्यादा रहता है.जब यह बैक्टीरिया ज्यादा होने लगते हैं तो पेशाब के रास्ते के बाहर वाले वाल्व में सूजन होने लगती है. इस बीमारी को सिस्टाइटिस कहते हैं. इंफेक्शन की कहानी यही से शुरू हो जाती है. सूजन के कारण पेशाब को रोकने की क्षमता कमजोर होने लगती है क्योंकि तब उस जगह पर दर्द भी बढ़ जाता है. ऐसे में कुछ महिलाओं को बार-बार पेशाब लीक करने लगता है. सामाजिक बंधनों के कारण आज भी महिलाएं जबर्दस्ती पेशाब को रोक कर रख लेती है जिस कारण दिक्कत और बढ़ने लगती है.

इन समस्याओं से कैसे निजात पाएं
डॉ. प्रीति बंसल ने बताय कि चाहे परेशानी हो या न हो, हर महिलाओं को ब्लैडर संबंधी हाईजीन का बेहद ख्याल रखना चाहिए. चूंकि 20-25 साल के बाद महिलाओं में पेशाब संबंधी दिक्कतें बढ़ती है, इसलिए इसके बाद की महिलाओं को और ज्यादा ख्याल रखना चाहिए. हमेशा साफ-सफाई का ख्याल रखें. पेशाब करने के बाद टिशू पेपर से जरूर पोछें. इसके बाद कभी भी पेशाब को रोकने की कोशिश न करें. इससे और ज्यादा परेशानी होगी. डॉ. बंसल ने बताया कि पूरे प्रजनन अंगों को बीमारियों से बचाने का एक बेहद जबर्दस्त और आसान तरीका है शौच के बाद पानी की दिशा को सही से रखना. जैसे जब शौच के बाद इस एरिया को पानी से साफ किया जाता है तो पानी का फ्लो फ्रंट टू बैक होना चाहिए न कि बैक टू फ्रंट. यानी शौच के बाद पानी को आगे से पीछे की ओर बहाए और हाथ को भी पीछे की ओर ही रखें, आगे की ओर न जाने दें. अगर पानी का फ्लो पीछे से आगे की ओर होगा तो पीछे के बैक्टीरिया यूरीन वाले एरिया में घुस जाएगा. इसलिए यह छोटी सी बात कई बीमारियों से बचा सकती है.

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