Travel With Kids: आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में बच्चों के लिए सबसे बड़ी सीख यही है कि खुश रहना महंगी चीज़ों या गैजेट्स से नहीं, बल्कि सादगी में भी पाया जा सकता है. शहरों में जहां बच्चों की दुनिया स्क्रीन, शॉपिंग मॉल और ऑनलाइन क्लास तक सीमित हो गई है, वहीं उत्तराखंड का छोटा सा गांव सर्मोली (Sarmoli) उन्हें असली ज़िंदगी से जोड़ता है. यहां बच्चे सीखते हैं कि प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर कैसे जीया जाए, कैसे छोटी-छोटी चीज़ों से बड़ी खुशियां पाई जा सकती हैं और कैसे ‘सस्टेनेबल लाइफस्टाइल’ सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि जीने का तरीका है. मुनस्यारी (Munsiyari) के पास बसा यह गांव अपनी शांत वादियों, बर्फ से ढकी पंचाचुली चोटियों और महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे ईको-होमस्टे के लिए मशहूर है. यहां हर मोड़ पर एक नई सीख छिपी है खेती से लेकर ऊन बुनाई तक, जंगल की सैर से लेकर पक्षियों को देखने तक, हर दिन बच्चों को प्रकृति से जुड़ने और ज़िम्मेदारी से जीने का नया अनुभव देता है.
दिन 1: ईको-होमस्टे में पहुंचें और स्थानीय जीवन में घुल-मिलें
सर्मोली पहुंचते ही सबसे पहले यहां के महिलाओं द्वारा संचालित ईको-होमस्टे में ठहरिए, ये घर लकड़ी, पत्थर और मिट्टी जैसी स्थानीय चीज़ों से बने होते हैं, जो सर्दी में गर्म और गर्मियों में ठंडे रहते हैं. यहां. आपको सच्ची हिमालयी मेहमाननवाज़ी का स्वाद मिलेगा जैसे भांग की चटनी, मडुआ की रोटी, पहाड़ी राजमा और झंगोरा की खीर.
यहां बच्चे सिर्फ खेल नहीं, बल्कि सीख भी रहे होते हैं वे देखते हैं कि पानी, बिजली और खाने जैसी चीज़ों को बेवजह खर्च न करना क्यों ज़रूरी है. कई होमस्टे में बच्चे किचन गार्डन देखते हैं, जैविक कचरे से कम्पोस्ट बनाना सीखते हैं और अपने हाथों से पौधे लगाते हैं.
दिन 2: जंगल की सैर और प्रकृति की पाठशाला
दूसरे दिन सुबह जल्दी उठिए और एक स्थानीय गाइड के साथ जंगल की सैर पर निकल जाइए. रास्ते में बच्चों को शहतूत, बुरांश और देवदार के पेड़ दिखेंगे. यह अनुभव उन्हें किताबों से कहीं ज़्यादा सिखाता है कि पेड़ सिर्फ ऑक्सीजन नहीं देते, बल्कि पहाड़ों का संतुलन बनाए रखने में भी अहम हैं.
अगर परिवार रोमांच का शौकीन है, तो पास के मिलम ग्लेशियर या नंदा देवी नेशनल पार्क की छोटी ट्रेकिंग करें. यहां बच्चे जानवरों के पदचिह्न पहचानना, पक्षियों की आवाज़ से उन्हें पहचानना और जंगल में जिम्मेदारी से घूमना सीख सकते हैं.

दिन 3: खेतों में काम और बीज बोने की सीख
तीसरे दिन सर्मोली के स्थानीय किसानों के साथ एक दिन बिताइए. यहां बच्चे समझते हैं कि हर अनाज कितनी मेहनत से उगता है और क्यों रासायनिक खाद से ज़्यादा अहम है जैविक खेती. किसान उन्हें बताते हैं कि मिट्टी की सेहत कैसे बचाई जाती है और बीजों को संरक्षित रखना क्यों ज़रूरी है.
एक पारिवारिक एक्टिविटी के तौर पर, आप सब मिलकर एक पौधा लगा सकते हैं. बच्चे जब उसे बढ़ते देखते हैं, तो समझते हैं कि प्रकृति की देखभाल का असली मतलब क्या है.
दिन 4: कारीगरों से सीखें – ऊन बुनाई और बांस शिल्प कला
सर्मोली में कई महिलाएं और कारीगर अपने घरों से पारंपरिक ऊन बुनाई और बांस से चीज़ें बनाते हैं. इस दिन बच्चों को गांव की हस्तकला देखने और सीखने का मौका मिलता है. वे ऊन कातने की चरखी चलाना, रंगों को प्राकृतिक तरीकों से तैयार करना और बांस से छोटी सजावटी चीज़ें बनाना सीख सकते हैं.
यह सिर्फ कला नहीं है यह धैर्य, एकाग्रता और मेहनत का पाठ है. यहां वे समझते हैं कि ‘स्लो लिविंग’ का मतलब सुस्ती नहीं, बल्कि हर काम को दिल से करना है.
दिन 5: पक्षियों का संसार और पंचाचुली की सुबह
आखिरी दिन सुबह-सुबह पंचाचुली की बर्फीली चोटियों के नीचे ट्रेल वॉक करें. रास्ते में आपको हिमालयन मोनाल, गरुड़, और अलग-अलग तीतर दिखाई देंगे. पक्षी-दर्शन के साथ जैसे-जैसे सूरज की किरणें चोटियों पर पड़ती हैं, दृश्य इतना सुंदर लगता है कि बच्चे उसे हमेशा याद रखते हैं.
यह सैर सिर्फ एक ‘मॉर्निंग वॉक’ नहीं होती यह आत्मा को सुकून देने वाला अनुभव होता है. बच्चे यहां महसूस करते हैं कि सच्ची खुशी चुपचाप बैठकर हवा को महसूस करने में भी मिल सकती है.
कैसे पहुंचें सर्मोली गांव
-हवाई मार्ग से: सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा पंतनगर एयरपोर्ट है (लगभग 340 किमी). वहां से मुनस्यारी के लिए टैक्सी या बस मिल जाती है.
-रेल मार्ग से: सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है (लगभग 280 किमी). यहां से भी टैक्सी या बस लेकर मुनस्यारी पहुंचा जा सकता है.
-सड़क मार्ग से: अल्मोड़ा, बागेश्वर या पिथौरागढ़ से मुनस्यारी तक नियमित बस या टैक्सी सेवा मिलती है. मुनस्यारी से सर्मोली सिर्फ कुछ किलोमीटर की दूरी पर है.
घूमने का सही समय
सर्मोली गांव घूमने का सबसे अच्छा समय मार्च से जून और सितंबर से फरवरी के बीच है. इन महीनों में मौसम सुहावना रहता है और आसमान साफ़ होता है.
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