Lord Shiva Bhatk Akka Mahadevi: ये सच है कि देवों के देव महादेव के अंदर कोई अहंकार, छल या चालाकी नहीं है, इसलिए उन्हें ‘भोला’ कहा जाता है. वे ऐसे देव हैं जो मात्र एक लोटा जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं. यही वजह है कि भगवान शिव के भक्तों की संख्या असंख्य है. इन भक्तों में एक अनूठी भक्त हुईं, जिन्हें अक्का महादेवी के नाम से जाना जाता है. वे न केवल भोलेनाथ की अनन्य भक्त थीं, बल्कि सामाजिक उत्थान के लिए उन्होंने अनेक कार्य किए. अक्का महादेवी को कन्नड़ की मीरा कहा जाता है. उन्होंने भगवान शिव को पति मानकर उनकी भक्ति में राजपाट और वस्त्र भी त्याग दिए थे.
कौन थीं अक्का महादेवी
अक्का महादेवी का जन्म
कर्नाटक में शिवमोगा के पास उडुताड़ी गांव में हुआ था. उनके जन्म का समय लगभग 1130 ई. माना जाता है. उनके पिता निर्मलशेट्टी और माता सुमति भगवान शिव की परम भक्त थीं. उन्होंने अपनी बेटी को भी शिव भक्ति के मार्ग पर चलने की दीक्षा दी. महादेवी भगवान शिव से इतनी प्रभावित थीं कि वे उन्हें चेन्न मल्लिकार्जुन यानी चमेली के फूलों के समान सुंदर प्रभु कहकर संबोधित करती थीं. वे शिव भक्ति में ऐसी लीन हो गईं कि उन्होंने शिव को अपना पति ही मान लिया. जैसे मीरा ने कृष्ण को अपना पति माना.
शिवजी को पति मानकर करती थीं उपासना
अक्का महादेवी ने भगवान शिव को अपना पति मानकर उनकी उपासना की. वे भगवान शिव की अनन्य भक्त और कन्नड़ भाषा की महान कवयित्री थीं. अक्का महादेवी चेन्ना मल्लिकार्जुन यानी भगवान शिव को अपना पति मानती थीं. उन्होंने खुद को भगवान शिव के लिए समर्पित कर दिया और मल्लिकार्जुन को संबोधित करते हुए ही उन्हें कविताएं लिखीं. उन्होंने भगवान शिव की अराधना के लिए तन के वस्त्रादि तक का त्याग कर दिया था. वे केवल अपने लंबे केशों से शरीर को ढककर रहतीं और सत्संग करती थीं.
गगन गिल की एक पुस्तक के मुताबिक, सुंदरी महादेवी को कभी न कभी वेध्य होना ही था. वह बारहवीं सदी की बजाय इक्कीसवीं सदी में रही होतीं, तब भी उन्हें इस नियति से कोई बचा नहीं सकता था. लेकिन उन्हें किसी दूसरे ने नहीं वेधा. यह उपक्रम उन्होंने स्वयं ही किया.
किन शर्तों पर हुई थी अक्का महादेवी की शादी
महादेवी भक्तिन थीं मगर युवती सुंदरी थीं. उनके भीतर का संतत्व ऐसे विकट रास्ते बाहर आएगा, यह अकल्पनीय है. किंवदंती है कि सोलह वर्षीया महादेवी का विवाह स्थानीय जैन राजा से हुआ था, जो उन्हें नदी तट पर पूजा में मगन देख उन पर मोहित हुआ था. महादेवी ने विधर्मी से विवाह पर अपनी कुछ आशंकाएं रखी थीं, कुछ शर्तें, कि राजा कभी उनकी पूजा-अर्चना में अड़चन नहीं डालेगा, उन्हें अपने गुरुजनों, सत्संगियों से मिलने देगा आदि. राजा मान गया था और विवाह सम्पन्न हो गया था. फिर एक-दो वर्ष में ही धीरे-धीरे सब शर्तें टूटने लगीं. इसके बाद महादेवी को घर छोड़ना पड़ा.
अक्का महादेवी ने क्यों त्यागे वस्त्र और महल
घर छोड़ने की घटना बड़ी ह्रदयविदारक है. रोज की तरह उस दिन भी महादेवी पूजा में बैठी थीं. उस दौरान राजा यानी उनका पति उन्हें देख ऐसा कामातुर हुआ कि उसमें पूजा समाप्त होने तक का धैर्य न रहा. उसने आकर महादेवी का वस्त्र खींच दिया. महादेवी का ध्यान भंग हो गया. इसपर महादेवी ने उघड़े शरीर की ओर संकेत कर उसे धिक्कारा. कहा, क्या इस देह के लिए तुमने मुझे ऐसा व्यथित किया है? पति ने कहा, तुम अब मेरी संपत्ति हो, तुम्हारे वस्त्र और आभूषण भी अब मैं जो चाहूं तब कर सकता हूं. इसपर महादेवी जैसी खड़ी थीं, वैसी बाहर निकल आईं, निर्वसन. महल से सड़क पर और सड़क से देश में घूमने लगीं.
कैसे व्यतीत किया अक्का महादेवी ने जीवन
अक्का महादेवी ने अपने लंबे केशों से खुद के तन को ढंका. उसी निरावरण देह ने शिव-तत्व की खोज-यात्रा आरंभ की. स्वयं का वध किया. महादेवी ने अल्लामा प्रभु के ‘अनुभव-मंडप’ के बारे में सुन रखा था. उनके स्थान से आठ सौ किलोमीटर दूर वह स्थान था. महीनों पैदल चल कर, भिक्षा मांगतीं, फब्तियां सुनतीं, तिरस्कार सहते जिंदगी बिता रही थीं.
बीच रास्ते में शिव से मिलन की प्राप्ति संभव
मगर शिवत्व की प्राप्ति संभवत: उन्हें बीच रास्ते ही कभी हो गई थी. उनकी आंतरिक शारीरिक रचना बदल गई थी, मासिक धर्म रुक गया था. काया-छिद्रों में से राख की विभूति निकलनी शुरू हो गई थी. रहस्यवादी इसे शिव से मिलन की उच्च अवस्था का संकेत मानते थे.
इसके बाद वह अक्का महादेवी कहलाईं
शिव भक्ति में लीन अक्का महादेवी भूख, प्यास और आवास से दूर हो गईं. वे पूरी तरह से कुदरत में विलीन हो गई थीं. वे हमेशा अपने मल्लिकार्जुन के संग रहती थीं. जहां जो मिलता खा लेतीं. किसी मंदिर के खंडहर या गुफा आदि में विश्राम कर लेतीं और दिन-रात भगवान शिव की भक्ति में लीन रहतीं.
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