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समाज की सीमाओं और रूढ़ियों को तोड़ते हुए अंबाला की शबनम नाथ ने न सिर्फ खुद को एक सशक्त कलाकार के रूप में स्थापित किया, बल्कि कथक जैसी पारंपरिक कला को नई पहचान दिलाई. कभी जिन बेटियों को मंच पर आने से रोका जाता थ…और पढ़ें
अंबाला: बदलते वक्त के साथ पारंपरिक कलाएं कहीं पीछे छूट रही हैं, लेकिन अंबाला की एक महिला कथक नृत्य को फिर से जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास कर रही हैं. अंबाला छावनी स्थित बीपीएस प्लैनेटेरियम परिसर में आयोजित वार्षिक नृत्य कार्यक्रम में शास्त्रीय कथक नृत्य की प्रस्तुति ने सबका मन मोह लिया. इस कार्यक्रम का आयोजन ‘संस्कृति सेंटर फॉर क्रिएटिव आर्ट्स’ के बैनर तले हुआ, जिसकी संस्थापक और मार्गदर्शक हैं शबनम नाथ.
शबनम नाथ ने 2004 में मात्र चार छात्राओं के साथ इस संस्था की शुरुआत की थी. आज यह संस्था 80 से अधिक छात्रों को प्रशिक्षित कर रही है. उनकी अगुआई में कई छात्र देश और विदेश में भी अपनी नृत्य अकादमियां चला रहे हैं. पंजाब यूनिवर्सिटी से कथक ऑनर्स कर चुकीं शबनम ने सामाजिक रुकावटों के बावजूद मंच पर आकर खुद कथक प्रस्तुत किया और लोगों की सोच को बदलने में सफलता पाई.
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि चित्रा सरवारा ने कहा कि शबनम नाथ की तपस्या और परिवार के सहयोग से आज अंबाला में कथक को एक सम्मानजनक स्थान मिला है. ‘संस्कृति सेंटर’ अब सिर्फ नृत्य संस्थान नहीं, बल्कि सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक बन चुका है, जहां डॉक्टर, प्रोफेसर, गृहिणियां और वरिष्ठ नागरिक तक प्रशिक्षण ले रहे हैं. संस्था प्राचीन कला केंद्र से मान्यता प्राप्त है और यहां निःस्वार्थ सेवा भावना के साथ नाममात्र शुल्क में गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण दिया जा रहा है.
शबनम नाथ का उद्देश्य है कि हर वर्ग की महिलाएं आत्मनिर्भर बनें और भारतीय सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ें.
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