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उत्तर प्रदेश का जनपद अलीगढ़ ताला और तालीम के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है. अलीगढ़ शहर का नाम जैसे ही जुबां पर आता है, ताला और तालीम के साथ-साथ यहां के स्वाद भी याद आ जाते हैं. इसी कड़ी में यहां मिलता है स्वादिष्ट पेड़ा, जिसका स्वाद लाजवाब होता है. अलीगढ़ का पेड़ा खाए बिना यहां की यात्रा अधूरी रह जाती है.
अलीगढ़ शहर का नाम जैसे ही लिया जाता है, दिमाग में तालीम, ताले और स्वाद तीनों की छवि एक साथ उभर आती है. इन्हीं खास स्वादों में एक नाम है—तस्वीर महल चौराहे पर स्थित राकेश खंडेलवाल की पेड़ा दुकान का. यहाँ से उठती खोवे की खुशबू और पेड़ों की मिठास लोगों को अपनी ओर खींच ही लेती है. इस जगह का माहौल इतना खास है कि हर राहगीर कदम रोककर यहां के पेड़े जरूर चखना चाहता है.
यह दुकान दशकों पुरानी है और 1990 से लगातार परंपरागत तरीके से पेड़े बनाए जा रहे हैं. खास बात यह है कि खोवा तैयार करने के लिए यहां गांव से सीधे प्योर दूध मंगाया जाता है. इसी दूध को घंटों तक पकाकर और भूनकर खोवा तैयार किया जाता है. जब इसमें केवड़ा और इलायची की खुशबू मिलती है, तो इसका स्वाद और भी बढ़ जाता है. यही वजह है कि यहां के पेड़े एक अलग ही पहचान रखते हैं.
राकेश खंडेलवाल बताते हैं कि उनके पेड़ों की कीमत ₹400 प्रति किलो है. इतनी कीमत होने के बावजूद ग्राहकों की भीड़ कम नहीं होती. लोग न सिर्फ खुद खाकर खुश होते हैं बल्कि घर के लिए भी पैक कराकर ले जाते हैं. यही नहीं, दिल्ली, आगरा, गाजियाबाद और बुलंदशहर जैसे शहरों तक इन पेड़ों की मिठास पहुंचती है. दूर-दराज़ से आने वाले लोग भी यहां रुककर इन खास पेड़ों का स्वाद चखना नहीं भूलते.
पेड़ों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि अलीगढ़ के लोग अब मथुरा जैसे स्वादिष्ट पेड़ों का आनंद यहीं उठा सकते हैं. यहां के पेड़े इतने मुलायम और शुद्ध स्वाद से भरपूर होते हैं कि एक बार मुंह में जाते ही “वाह” निकलना लाजमी है. यही वजह है कि इन्हें चखने के बाद लोग इसे बार-बार खाने की ख्वाहिश रखते हैं.
अलीगढ़ की इस दुकान पर सिर्फ एक ही तरह का पेड़ा नहीं मिलता, बल्कि कई वैराइटीज भी मौजूद हैं. जैसे इलायची वाला पेड़ा, केवड़ा वाला पेड़ा, केसर वाला पेड़ा और नारियल बुरादा वाला पेड़ा. हर वैराइटी का स्वाद अलग और खास होता है. मिठाई के शौकीनों के लिए यह दुकान किसी जन्नत से कम नहीं है.
यहां पेड़ों की मांग मंगलवार और शनिवार को सबसे ज्यादा रहती है. वजह यह है कि लोग इन्हें प्रसाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं. इन खास दिनों में दुकान पर ग्राहकों की लंबी कतारें देखी जा सकती हैं. कोई मंदिर में चढ़ाने के लिए ले जाता है, तो कोई परिवार के साथ मिलकर खाने के लिए. इन दिनों का नजारा वाकई देखने लायक होता है.
लगभग तीन दशकों से चल रही यह परंपरा अब अलीगढ़ की पहचान बन चुकी है. लोगों का भरोसा और प्यार ही है जिसने राकेश खंडेलवाल की इस दुकान को खास मुकाम दिया है. यहां के पेड़े न सिर्फ मिठाई हैं बल्कि अलीगढ़ की उस मिठास का प्रतीक हैं जो हर किसी के दिल में बस जाती है. अगर आप अलीगढ़ आएं और यहां के पेड़े न चखें, तो सच मानिए आपकी यात्रा अधूरी रह जाएगी.
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