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Jharkhand Special Sweet: झारखंड की तरफ खास मौकों पर अरसा नाम की मिठाई बनायी जाती है. यह चावल के आटे और गुड़ से बनती है. बाहर से कुरकुरी और अंदर से सॉफ्ट ये मिठाई एवरग्रीन है जिसके सामने आज की फैन्सी स्वीट्स फीकी हैं.
झारखंड की रसोई में मिठाइयों का अपना अलग ही रंग होता है. दिवाली से लेकर छठ तक कई तरह के पकवान पकाए जाते हैं. पारंपरिक पकवानों में अरसा एक ऐसा नाम है जो हर त्योहार, शादी-ब्याह या पूजा के मौके पर जरूर बनाया जाता है. इसे लोग बेहद चाव के साथ खाते हैं.
अरसा को झारखंड, बिहार और उड़ीसा के कई इलाकों में थोड़े-बहुत बदलाव के साथ बनाया जाता है. इसे खासतौर पर दीपावली, छठ या फसल कटाई के समय पकाया जाता है. यह बाहर से हल्का कुरकुरा और अंदर से मुलायम होता है.
रेसिपी साझा करते हुए आदिवासी महिला रवीना कच्छप बताती हैं कि अरसा बनाने के लिए बहुत ज्यादा चीजों की जरूरत नहीं होती. बस चावल, गुड़ और तेल या घी की जरूरत पड़ती है. इसे बनाने के लिए सबसे पहले पारंपरिक तरीके में चावल को धोकर सुखाया जाता है और फिर उसे बारीक पीसकर चावल का आटा तैयार किया जाता है. वहीं गुड़ को पानी में पिघलाकर चाशनी जैसी बना ली जाती है.
उन्होंने आगे बताया कि जब गुड़ की चाशनी ठंडी हो जाती है, तब उसमें धीरे-धीरे चावल का आटा मिलाया जाता है. इसे हाथों से अच्छे से गूंथकर एक सख्त लेकिन लचीला आटा बनाया जाता है. यही आटा आगे चलकर अरसा का आकार लेता है.
इस गूंथे हुए आटे की छोटी-छोटी लोइयां बनाकर उसे हल्के हाथों से गोल और चपटा कर लिया जाता है. पारंपरिक रूप में इसके ऊपर हल्का सा तिल या खसखस भी लगाया जाता है जिससे इसका स्वाद और बढ़ जाता है.
फिर एक कढ़ाई में तेल या घी गर्म किया जाता है और फिर मध्यम आंच पर अरसे को धीरे-धीरे तला जाता है. यह भी ध्यान देना होता है कि इसे तेज आंच पर नहीं तलना चाहिए, वरना यह बाहर से जल जाएगा और अंदर कच्चा रह जाएगा. अरसा तब तैयार होता है जब उसका रंग सुनहरा भूरा हो जाए.
तला हुआ अरसा बाहर से कुरकुरा और अंदर से नरम होता है. इसका स्वाद गुड़ की मिठास और चावल के सुगंध का मेल होता है. इसे ठंडा होने के बाद परोसा जाता है और यह कई दिनों तक खराब नहीं होता, इसलिए इसे यात्रा या रिश्तेदारों को देने के लिए भी रखा जाता है.
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