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Health Benefit: मध्य प्रदेश के सागर से एक दाल सऊदी अरब तक जाती है. वहां के लोग इस दाल को दोगुने-तिगुने दाम पर खरीद रहे हैं. क्योंकि, ये दाल अब आसानी से नहीं मिलती. इसे ताकत, प्रोटीन का भंडार भी कहा जाता है…
जंगली तुवर दाल के फायदे.
हाइलाइट्स
- सऊदी अरब में जंगली तुवर दाल की भारी मांग है
- प्रोटीन और फाइबर से भरपूर है जंगली तुवर दाल
- सागर के किसान ने शुरू की जंगली तुवर दाल की खेती
सागर: भारत में कई तरह की दालों की खेती की जाती है. जिनका अपना-अपना महत्व है. लेकिन, सागर के एक किसान ने जंगली दाल की खेती शुरू की है, जिसकी डिमांड सऊदी अरब तक है. इस खास वैरायटी की दाल को लोग दोगुने-तिगुने दाम पर खरीदने को तैयार हैं. इस दाल की खेती बहुत कम की जाती है, लेकिन इसके गुणों के कारण यह दुनिया भर में लोकप्रिय हो रही है.
जंगली तुवर दाल को लुप्तप्राय अनाज में माना जाता है, लेकिन जिन किसानों के पास इसका बीज उपलब्ध है, वे न सिर्फ खुद इसकी खेती कर रहे हैं, बल्कि दूसरे किसानों को भी बीज और सलाह दे रहे हैं. इस दाल के प्राकृतिक गुण बने रहें, इसके लिए इसे हाथ की चक्की से तैयार किया जाता है. इसके लिए उन्होंने एक RPM की चक्की भी बनवाई है, जो जाता (चक्की) की तरह ही काम करती है.
जंगली तुवर की खासियत
तुवर दाल में प्रोटीन और फाइबर बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है, जिससे गैस नहीं बनती और यह पाचन में भी मदद करती है. इन्हीं खूबियों की वजह से इसकी डिमांड दिन पर दिन बढ़ती जा रही है. इस दाल को प्रोटीन का भंडार भी कहा जाता है.
ऐसे शुरू की खेती
सागर के किसान आकाश चौरसिया बताते हैं कि वे लंबे समय से जैविक खेती पर काम कर रहे हैं. उन्होंने मल्टी लेयर फार्मिंग की तकनीक भी ईजाद की है, जिसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें युवा किसान मित्र के सम्मान से नवाजा है. एक बार उन्हें जंगल में तुवर दाल के बीज मिले थे, जिसके बाद उन्होंने जंगली तुवर दाल को तैयार किया. धीरे-धीरे बीज बनाकर किसानों को वितरित किया.
ऐसे सऊदी पहुंची दाल
2 साल पहले मल्टी लेयर फार्मिंग का प्रशिक्षण देने के लिए आकाश सऊदी अरब गए थे, तब उन्होंने तुवर दाल के फायदे के बारे में जानकारी दी थी. इससे उत्साहित होकर वहां के लोगों ने सैंपल की डिमांड की थी. सैंपल भेजने पर उन्हें काफी पसंद आया और अब सीधा एक कंटेनर दाल की डिमांड की गई है, जिसे तैयार किया जा रहा है.
100 की दाल 200 में खरीदते हैं..
किसान आकाश ने बताया, लोकल बाजार में इसकी कीमत 100 रुपये प्रति किलो है, लेकिन सऊदी अरब वाले इसे 200 रुपये प्रति किलो के हिसाब से खरीद रहे हैं. ट्रांसपोर्ट का पूरा खर्च विदेशी ही उठाएंगे. आकाश बताते हैं कि यह करीब 7 महीने की फसल होती है, लेकिन बेहद कम संसाधनों में इसकी खेती की जा सकती है. अगर किसान भाई यह खेती करते हैं तो उन्हें अच्छी आमदनी हो सकती है.
Disclaimer: इस खबर में दी गई दवा/औषधि और स्वास्थ्य से जुड़ी सलाह, एक्सपर्ट्स से की गई बातचीत के आधार पर है. यह सामान्य जानकारी है, व्यक्तिगत सलाह नहीं. इसलिए डॉक्टर्स से परामर्श के बाद ही कोई चीज उपयोग करें. Bharat.one किसी भी उपयोग से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगा.
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