Rudraprayag Durgadhar Temple : उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में नागनाथ पोखरी रूट पर स्थित दुर्गाधार मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि अपनी चमत्कारी घटनाओं और प्राचीन कथाओं के लिए भी प्रसिद्ध है. यह मंदिर ग्राम पंचायत बोरा के अंतर्गत आता है, जहां मां दुर्गा की दिव्य उपस्थिति को लेकर लोगों की गहरी श्रद्धा है. लोकल18 से बातचीत में मंदिर के सेवादार सुरेंद्र सिंह नेगी ने बताया कि यह मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि यहां की परंपराएं और चमत्कार इसे और भी विशेष बनाती हैं.
ऐसे हुआ यहां मंदिर स्थापित
मंदिर की स्थापना से जुड़ी कहानी भी बेहद दिलचस्प है. प्राचीन काल में गांव के एक परिवार की गाय जंगल में एक विशेष स्थान पर प्रतिदिन दूध प्रवाहित करती थी, जबकि घर में उसका दूध कभी नहीं निकलता था. एक दिन गाय का मालिक गाय का पीछा करते-करते जंगल पहुंचा और उसने देखा कि गाय एक शिला पर दूध गिरा रही है. गुस्से में उसने कुल्हाड़ी से गाय पर प्रहार किया, लेकिन यह वार गाय पर न लगकर शिला पर जा लगा. गांव वालों ने इस शिला का अंतिम छोर खोजने के लिए खुदाई शुरू की, लेकिन अंत में उन्हें एक आकाशवाणी हुई. जिसके बाद यह मंदिर आस्था का केंद्र बन गया. यह स्थान दिव्य है, जहां मां दुर्गा और भोले शंकर एक साथ विराजमान थे.
यहां बाघ मंदिर में आकर टेकता है माथा
मां दुर्गा का वाहन बाघ यहां की मान्यताओं में एक खास स्थान रखता है. स्थानीय लोगों के अनुसार, यहां आयोजित होने वाले धार्मिक अनुष्ठान के दौरान बाघ मां के दरबार में आता है, परिक्रमा करता है और फिर शांति से वापस चला जाता है. सामान्य रूप से आक्रामक समझे जाने वाला बाघ भी यहां पर बेहद शांत हो जाता है. दुर्गाधार मंदिर में पूजा का अधिकार ग्राम मायकोटी और बैंजी के पंडितों को है. यहां हर साल अगस्त और सितंबर माह में भव्य देवी पूजन का आयोजन किया जाता है, जिसे जग्गी कहा जाता है. यह तल्ला नागपुर क्षेत्र की एकमात्र ऐतिहासिक जग्गी है.
सेवादार सुरेंद्र सिंह नेगी ने बताया कि यह मंदिर न केवल श्रद्धालुओं के लिए बल्कि पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है. मंदिर परिसर से चौखंबा पर्वत के अद्भुत दृश्य दिखाई देते हैं, जो यहां आने वालों को मानसिक शांति प्रदान करते हैं. इसके अलावा भगवान कार्तिकेय का मंदिर भी यहां से दिखाई देता है.
अनहोनी से पहले मां दुर्गा करती है सचेत
मां दुर्गा की दिव्य शक्ति के अलावा मंदिर में देवी का पश्वा बनने की परंपरा भी देखने को मिलती है. स्थानीय लोगों का मानना है कि किसी भी विपत्ति की संभावना होने पर मां दुर्गा किसी व्यक्ति पर आती है, जिसे देवी का पश्वा कहा जाता है. यह परंपरा आज भी कायम है और मां दुर्गा का आशीर्वाद गांववालों पर बना हुआ है. मां किसी भी अनिष्ट होने से पहले ही गांव वालों के सचेत कर देती है.
धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र
चारों ओर से मंत्रमुग्ध करने वाली पहाड़ियों से घिरा यह मंदिर श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है. यहां आने वाले भक्त मां दुर्गा के चमत्कार और मंदिर की दिव्यता का अनुभव करते हैं. चौखंबा पर्वत के दर्शन और मंदिर की पवित्रता यहां आने वालों को एक अनोखा आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है. दुर्गाधार मंदिर, जहां प्रकृति की सुंदरता और दिव्य शक्ति का संगम है, न केवल उत्तराखंड के बल्कि देशभर के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रतीक है. मां दुर्गा की चमत्कारी घटनाएं, बाघ की उपस्थिति और यहां की प्राचीन परंपराएं इस मंदिर को विशेष बनाती हैं. यह स्थान धार्मिक आस्था के साथ-साथ पर्यटकों के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थल है.
कैसे पहुंचे दुर्गाधार मंदिर?
यह मंदिर उत्तराखंड के नागनाथ पोखरी रूट पर स्थित है. यहां पहुंचने के लिए कई परिवहन विकल्प उपलब्ध हैं. सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जौलीग्रांट एयरपोर्ट, देहरादून है, जो दुर्गाधार मंदिर से लगभग 190 किमी दूर है. हवाई अड्डे से आप टैक्सी या बस के माध्यम से रूद्रप्रयाग पहुंच सकते हैं. रूद्रप्रयाग जिला राज्य के प्रमुख शहरों से सड़कों द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ है. देहरादून से दूरी 180 किमी (6-7 घंटे), हरिद्वार से दूरी 160 किमी (5-6 घंटे), ऋषिकेश से दूरी 140 किमी (4-5 घंटे) है. रूद्रप्रयाग पहुंचने के बाद, नागनाथ पोखरी रूट पर ग्राम बोरा के पास स्थित दुर्गाधार मंदिर तक स्थानीय साधनों या पैदल मार्ग से पहुंचा जा सकता है.
FIRST PUBLISHED : December 10, 2024, 10:37 IST
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