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चाट से खिचड़ी तक सब लजीज…जानें ऋषिकेश का ये रेस्टोरेंट कैसे बना टूरिस्ट की पहली पसंद – Uttarakhand News

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ऋषिकेश. जहां गंगा की लहरों की शीतलता, आकाश की नीली छटा और पर्वतों की ऊँचाई मन को सुकून देती है, वहाँ ऋषिकेश उत्तराखंड का एक अनुपम नगर हर वर्ष हजारों आगंतुकों को अपनी ओर खींचता है. साधु संतों की शांति, योग और ध्यान की संस्कृति और प्रकृति की गोद में बसी इस जगह में भोजन का अनुभव भी एक आध्यात्मिक यात्रा जैसा हो जाता है. ऐसे में “वर रेस्टोरेंट” एक अलग ही स्थान रखता है. यहाँ सिर्फ पेट भरने का काम नहीं होता, बल्कि आत्मा को प्रसन्न करने का योग होता है.

स्वागत व तिलक-तिलवारा

Bharat.one के साथ बातचीत के दौरान यहां के मैनेजर संदीप ने कहा कि “वर रेस्टोरेंट” का नाम ही अपने आप में एक प्रतीक है. गंगा की तरह निर्मल, हिमालय की तरह पवित्र और भगवान का वरदान जैसा सौभाग्य. जैसे ही आप इस रेस्टोरेंट में कदम रखते हैं, सर्वप्रथम आपका तिलक किया जाता है. यह तिलक न सिर्फ शुद्धता का संकेत है बल्कि यह भोजन से पूर्व आस्था की शुरुआत है. इसके बाद पंचामृत से आपका स्वागत होता है, जो शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है. इसकी मधुर छवि आपके मन को भोजन की ओर उत्सुकता से भर देती है.

भोजन की संरचना: छाछ से लेकर मिष्ठान तक

भोजन की शुरुआत एक सिग्नेचर ड्रिंक छाछ से होती है, जो भारतीय संस्कृति में पाचन शक्ति बढ़ाने वाला माना गया है. इसके तुरन्त बाद ताज़ा फल का जूस परोसा जाता है, जो आपके स्वाद को जगाता है और शरीर को पोषण देता है. इसके बाद आते हैं स्टार्टर, जो मंदिरों से प्रेरित और स्थानीय व्यंजनों का अनूठा संगम होते हैं.मेन कोर्स में जब थाली पर पहुँचते हैं करीब 20 से 25 व्यंजन, तो लगता है जैसे भारत के विभिन्न भागों के मंदिरों की प्रसादवाली थाली सम्पूर्ण भारत की दिव्यता लिए हुए हो. इसमें आप पाते हैं बद्रीनाथ की साधारण लेकिन स्वादिष्ट खिचड़ी, दक्षिण भारतीय मंदिरों की चतुर्सुगंध नारियल पायसम, बृजभूमि की रंगीन चाट, गढ़वाली अरबी के गुटके, गुरुद्वारों के लंगर की सरलता-भरी थाली और रागी की बनी पौष्टिक इडली. हर व्यंजन के पीछे कोई न कोई कहानी है. कोई उत्सव का प्रसाद है, कोई साधु संतों के भोजन की याद है.
थाली व्यवस्था भी विशेष है. चार “राजभोज थालियाँ” अलग-अलग दिन पर परोसी जाती हैं. इस तरह हर दिन का स्वाद और हर दिन का प्रसाद नया अनुभव देता है. एक थाली की कीमत 1050 रुपये है, लेकिन यह सिर्फ व्यंजनों का पोषण नहीं करता, बल्कि यह मन, आत्मा और संस्कृति को भी संतुष्ट करता है.

सात्विकता एवं आध्यात्मिकता की संगति

यहाँ सारे व्यंजन शुद्ध सात्विक होते हैं. मतलब सिर्फ पौधों से प्राप्त सामग्री, हल्के मसाले और कम तला-भुना भोजन. मांस, मछली या अंडे का कोई स्थान नहीं होता. इस तरह का भोजन शरीर को हल्का बनाता है, मन को शांत करता है और ध्यान की अवस्था को प्रेरित करता है. मंदिरों का प्रसाद होने के कारण इस भोजन में एक दिव्यता होती है. भोजन से पहले भगवान को भोग लगाया जाता है. यह केवल रेसिपी नहीं बल्कि श्रद्धा और परंपरा का हिस्सा है.


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https://hindi.news18.com/news/lifestyle/recipe-temple-prasad-thali-satvik-food-rishikesh-near-ganga-local18-9647943.html

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